Tuesday 19 September 2017

मे जिन्दगी से बस यह सोचकर ही नाराज नहीं हूं के कुछ तो मेरे बारे में भी सोचा होगा रब ने।
मेरे लिए भी कुछ तो अच्छा संभाल कर रखा होगा इस डगर में।।
परवरदिगार पे एतबार ही कर लूंगा जो कुछ न मिला।
हो सकता हैं यही रजा रखी हो मुझसे उस रब ने।।
के यूँ तो ख़ामोशी से चल रहा हु धीमे धीमे ।
कभी तो दौड़ कर हो ही जाऊंगा शामिल सब में।।
अल्फ़ाज यूँ तो नम हैं मेरी जबान के।
कभी तो चिल्लाना भी लिखा होगा इस किस्मत में।।
के मंजिल को ढुंढते ढुंढते, में रहें तलाशना भूल गया।
पर कभी तो में भी चलूंगा सही पथ में।।
अजनबी मुस्कान को ढूंढना इतना आसान तो नहीं।
पर कभी तो ढूंढ लुंगा उस खुशी को जिंदगी की जद में।।
में रोता हु कभी कभी जो किसी ग़म में।
ख्याल ये भी हे की कभी तो समझेगा मेरे आंसू की कीमत वो फुर्सत में।।
मे जिन्दगी से बस यह सोचकर ही नाराज नहीं हूं के कुछ तो मेरे बारे में भी सोचा होगा रब ने।
मेरे लिए भी कुछ तो अच्छा संभाल कर रखा होगा इस डगर में।।

----आनंद सगवालिया

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